Shayri by Anjum Rahbar

जो चाहे कीजिए सजा तो है ही नहीं,
जमाना सोच रहा है कि खुदा तो है ही नहीं।
दिखा रहे हो नई मंजिलों के ख़्वाब हमें,
तुम्हारे पास कोई रास्ता तो है ही नहीं।
बचाने आयेगी बरिशे कैसे झुलसते, फूलों से लब पे दुआ तो है ही नहीं।
अपने चेहरे के दागो पे कैसे वो फक्र करे,
अब उनके पास कोई आइना तो है ही नहीं,
बनेगा दोस्तो दरिया में रास्ता कैसे,
हमारे पास हमारा असा तो है ही नहीं।
सब आसमान से उतरे हुए फरिश्ते हैं,
सियासी लोगों में कोई बुरा तो है ही नहीं।


Prashant shukla
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