attitude with prashant shukla

अब मै जो चाहूं तो बादल हटा के चांद की झलक के आऊ,
तुम हवा में खिड़की बना के यूं ही झांकते रहो,
मैं चाहूं तो सूरज को कान पकड़ के फलक ले आऊ,
मेरी भूसा देखकर मुझे कमजोर ना समझ लेना,
राजपूत हूं उतरू समंदर में तो कलेजे से खींच के प्यास की ललक ले आऊं।

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