झूठे और सच्चे सहारे।

'झूठे सहारों' की यही पहचान है वह तुम्हें और पंगु और दुर्बल कर देते हैं,
वह तुम्हारे लिए और आवश्यक कर देते हैं कि तुम सहारों पर ही आश्रित रहो।

'सच्चे सहारे' की यह पहचान है कि वह तुम्हें संभालता है और धीरे-धीरे अपने आप को अनावश्यक बना देता है। वह तुम्हें कभी अपनी लत नहीं लगने देगा।

हालांकि तुम यही चाहोगे कि
तुम उसको भी पकड़ लो, भींच लो क्योंकि सहारा तो मीठी चीज़ होता है ना?
ज़िम्मेदारी से बचाता है वह तुमको।
तो अपनी तरफ से तो तुम यही चाहोगे कि जो सच्चा सहारा है
तुम उसको पकड़ ही लो।

पर 'सच्चे सहारे' का गुण यही है 
कि तुम कितना भी चाहो
वह तुम्हारा अहित नहीं होने देगा और तुम्हारा अहित इसी में होता है कि तुम्हें सहारे की लत लग जाए।
           Author: Shiv

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