प्रेम क्या है? हम किसी स्त्री से प्रेम क्यों करते हैं? स्त्री-पुरुष के मध्य जो आकर्षण होता है, उसका क्या कारण है? स्त्रियों के प्रति जो सकारात्मक या नकारात्मक विचार आते हैं, उनका कारण क्या है? मेरा तर्क: अगर प्रेम तुम करते तुम बताओ न। कोई अज्ञात बात होती, तो मैं बताता। जो तुम कर रहे हो, वो तो तुम ही बताओगे न कि क्यों कर आए। मुझे क्या पता। और ऐसा भी नहीं कह रहे तुम कि, एक बार ऐसा क्यों हो गया। तुम कह रहे हो, “हम ऐसा क्यों करते हैं?” इसका मतलब बारम्बार हो रहा है, होता ही जा रहा है। तो तुम बताओ कि ये हो क्या रहा है। मुझे क्या पता। जो कुछ होता है तुम्हारे साथ, उसकी ख़बर लेते हो कि – “ये क्या हो गया?” या फ़िर फिसल जाते हो बस कि – “बस हो गया।” चलो हो गया। फ़िर? “अरे फ़िर से हो गया।” फ़िर? “अरे फ़िर से हो गया।” होता ही जा रहा है। जितनी देर में खड़े होते हो कि हाथ बढ़ाएँ कि न फिसलो अब, तुम फ़िर गिर गए। और हाथ यहाँ जा रहा है, तुम नीचे ज़मीन पर हो, फ़िर फिसल गए। इतना भी अचानक नहीं हो जाता, सोचा-समझा निर्णय होता है। माना कि ...
Bulandi Ka Nasha Simton Ka Jaadoo Tod Deti Hai, Hawa Udate Huye Panchhi Ke Baajoo Tod Deti Hai, Siyaasi Bhediyo Thhodi Bahut Ghairat Jaroori Hai, Tawayaf Bhi Kisi Mauke Pe Ghunghroo Tod Deti Hai. बुलंदी का नशा सिमतों का जादू तोड़ देती है, हवा उड़ते हुए पंछी के बाज़ू तोड़ देती है, सियासी भेड़ियों थोड़ी बहुत गैरत ज़रूरी है, तवायफ तक किसी मौके पे घुंघरू तोड़ देती है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें